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ज्ञानी अज्ञानी का भेदभाव (शीर्षक)

 HELLO FRIENDS 🙏नमस्कार🙏

कविता का शीर्षक ज्ञान अज्ञान

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आज मेरी ये कविता ज्ञान ओर अज्ञान के भेदभाव को अग्रसर कर रही है।जिसमे बताया गया कि शिक्षा को ग्रहण करके भी व्यक्ति कभी - कभी  अशिक्षित बन जाता हैं।जो कि सही नहीं है।

ज्ञानी अज्ञानी का भेदभाव


कोई ज्ञानी क्यों माने 

खुद को अज्ञानी..।


कोई नहीं उचित उपाय

जो बारीकी से परीक्षा करके

एक बात हमने तो मानी...।


यह निश्चित अहंकार नहीं तो

और क्या हो सकता है।

विश्व का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करके भी

मूर्ख यू ही उछलता हैं...।


बुद्धिमानी व्यक्ति केवल 

ज्ञान को ही आत्मसात करे

फिर भी इस परिप्रेक्ष्य में

कोई भी व्यक्ति पूर्णतः ज्ञानी फिर भी ना बने..।


एक बात तो याद रखे 

जो पात्र भरा सदा देखे

उसके ज्ञान मे तनिक भ्रम नहीं

की और पात्र भर ना सके...।


और वही जो पात्र हमेशा आधा 

खाली ही रखे

उसके पात्र को सदा ही व्यक्ति

फिर भी अपने ज्ञान से पूरा भरे...।


यही फ्रक है एक और अज्ञानी में

कोई उसे पूरा समझे और कोई उसे

पूरा पाने की चाह रखे..।


एक बुद्धिमान अपने को मूर्ख कहकर भी

सदा हंसे

और मूर्ख हमेशा अपने ज्ञान का बेमतलब

का अहंकार करे...।


ज्ञानी अज्ञानी की परीक्षा कोई इंसान 

कर ना सके

क्युकी बिना ज्ञान प्राप्त करके भी व्यक्ति

अच्छे मन से महान - महान से कार्य करे...।


तो याद रखिए एक बात सदा जो 

ज्ञान का बेमतलब अहंकार करे

ऐसे ज्ञान से बचकर रहीए जो

जीवन भर बेमतलब परेशान करे


बेमतलब के ज्ञान से ज्यादा अच्छा है

सुकून भरा 

बिना स्वार्थ का खुशियों भरा मीठा जीवन सा....।।


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कविता का भावार्थ

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कविता का भावार्थ यही है कि ढेरों शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी अगर व्यक्ति सुकून से दो वक्त का खाना ना खा सके तो ऐसी शिक्षा से अच्छा है,असिक्षित रहना क्युकी कभी - कभी अत्यधिक शिक्षा व्यक्ति को अहंकारी बना देता है।जिसके चलते व्यक्ति सुकून से जीवन नहीं जी पाता है।मेरा तात्पर्य ये नहीं कि व्यक्ति शिक्षा को ग्रहण नहीं करे 

शिक्षा ग्रहण करें ,कम करे या ज्यादा परंतु जितनी भी करे उसका मान रखे क्युकी शिक्षा ग्रहण करके भी अगर व्यक्ति अहंकार करे तो एसी शिक्षा किसी काम की नहीं होती।


   🙏 धन्यवाद🙏

 कविता🙏 यादव🙏


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