HEllO FRIENDS नमस्कार 🙏
कविता का शीर्षक स्वयं को सुधारे
इस कविता मे बताया गया है कि इस संसार में पैदा हुआ हर इंसान गलती करता है।इससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा कमजोर और धूमिल हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को बहुत सतर्क और चौकन्ना रहना चाहिए जबकि वो दुसरो को कि बदनाम करने में लगा रहता है,जबकि एक बात तो सत्य है कि सही इंसान पर उंगली उठाने वाला भूल जाता है कि सबपे उंगली उठाने वाले के उप्पर स्वयं उसकी एक उंगली आरोप लगाती है इसलिए दूसरों को दोष देने की अपेक्षा खुद को सुधारने कि कोशिश करनी चाहिए।
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प्रतेक व्यक्ति गलती करता है
और मूर्खता का शिकार होता हैं।
इससे व्यक्ति कमजोर तो होए
और धूमिल उसका अस्तित्व होता हैं।
दुसरो को जो बदनाम करे
और गिने दोष हज़ार
स्वयं रहे चौकन्ना और
करे हज़ारों पाप
एसे व्यक्ति केवल दुसरो की ही
गलतियां गिने ,पर अपने पर ना कोई दोष को ढूंढे
तो सामने वाला व्यक्ति भी
आपके दोष बता सकता है
और अस्तित्व पर उंगली भी उठा सकता हैं।
क्युकी कांच के घर रहे तो
पत्थर कोई भी फेंक सकता हैं।
अतः ना दे दोष किसी को
और ना करे उजागर दोष किसी के
दुसरो पर ना आरोप लगाए
ना उसकी कोई कमिया गिनाए
क्युकी इस दुनिया मे कोई भी है पाक
सबमें ज्यादा नहीं तो थोड़े दोष हर किसी में रहे
कुछ दोष अच्छाई के तो
कुछ दोष बुराई के है
पात्र अगर चूल्हे पर रखा तो
काले धब्बे दोनों और पड़े
कीचड़ पर मारे पत्थर तो
छिटे अपने उप्पर भी पड़े
जो बुरा हो!वो ध्यान रखें भार्ष्टाचरी काम करके भी
सही इंसान पर बेमतलब की आरोपो की ना खीचे लकीरें
जो स्वयं पापी हो वो पापो की
बेमतलब की ना गिनती करें
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कविता का भावार्थ
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दुसरो पर आरोप लगाने कि अपेक्षा अपने पापो का अंत करे।क्युकी एक पापी ही दुसरो की हमेशा बुराई ही गिनता है।जो गलत है।
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धन्यवाद
कविता यादव
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