आज मैने जो कविता लिखी हैं,बस उसमें यही बताया है, मैने की कभी किसी का बुरा मत कीजिए क्युकी ये बुराई लोट कर आपके पास ही आती हैं,आज हंसेंगे,कल भी हंसोंगे पर कब तक, और किसी को परेशान करोगे वो भी कब तक क्युकी आप अपनी बुराई अपने आप से छुपा लोगे पर क्या उस उप्पर वालो की नजर से बच पाओगे,नहीं ना ....।
तो अपने क्रम सुधारिए और कुछ नही..।
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हज़ारों ख्याबो को टूटते देखा हमने
हां आशुओं को ज़मीन पे गिरते देखा है हमने
तकल्लुफ करते - करते रह गए कई बातों के लिए
हां तमन्नाओं को टूटते देखा हमने....।
मंजिल की तलाश में दिन रात किया हमने
हां मेहनत से सही राह पर चलने के लिए हमने
मिले एसे भी और मील रहे हैं,आज तक
ये कैसे बड़े और क्यों बड़े की जुगाड में लगे है,अब तक
सच मे कुछ लोग जीवन में सही में बेकार होते हैं
आप जीवन भर रोते रहे बस यही फ़िराक़ मे रहते हैं।
इतने रहम दिल और दयावान हम भी नहीं हैं
हम भी यही है और तुम भी यही और देखते है
तुम्हारे कर्म तुम्हारे कितने नसीब में है....।
किसी के खाबो को रौंदते हुए देखने की चाह रखते हैं
कुछ लोग बहुत ज्यादा हमारी हंसी से जलते हैं..।
जमाने में चाहे जो करो,पर बुरा मत करो किसी का
हम पर नज़र है उस रब खबर हमको तो है...।
तुम भी मगर बच के रहना हमारा बुरा चाहने वालो
क्युकी हम भी यही है, और तुम भी यही हो..।
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कविता का भावार्थ
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कविता का भावार्थ यही है,की जितना लोग बुरा दुसरो के लिए चाहते है,उतना अगर खुद के बारे में सोचे तो ज्यादा अच्छा रहता है।ना खुद का ना दुसरो का समय खराब होता है।
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