मेरी आज की कविता किरदारों पर आधारित है। जो हमारे जीवन की डोर है, जिसे निभाना हमारा कर्तव्य है। चलिए पड़ते है, कविता किरदार।
अपना किरदार निभा लीजिए
जीवन में किरदार बहुत निभा लिए
कोई अपने तो कुछ अलग से लगे
ये जीवन की डोर को कोन खींचकर रखता है।
कुछ अपने आप से तो कोई
किसी और के किरदार में रहता है।
जीवन के किरदार बहुत निभा लिये
कोई अपने तो कुछ अलग से लगे..
पल में कोई झूठ रहता है, कही
तो वो पल ना जाने कितने बदलाव करता है।
कोई नही करता भरोसा किसी पे
ये अंदाज जब उसे पता चलता है।
जीवन के किरदार बहुत निभा लिये हमने
ना जाने कोन इसकी डोर खींचकर रखता है…
फिर भी असत्य, सत्य को पराजित करें
हसंते हुए लोगो को कुछ लोग गंभीर करे
ना पसीना बहाए, ना कोई मेहनत करें
पका पकाया मिले स्वयं को तो,हराम की गाली दे किसी और को
जीवन के किरदार बहुत निभा लिये हमने
ना जाने कोन इसकी डोर खींचकर रखता है…
सफलता और असफलता कोई मायने रखती नहीं
जिसकी किस्मत रही,
उसी को खुश होने का मोका मिलता हैं।
क्यों? क्या ? और केसे का सवाल रहा नही
जिसकी जेब में पैसा है, उसी का दिन अच्छे से गुजरता है।
जीवन के किरदार बहुत निभा लिये हमने
ना जाने कोन इसकी डोर खींचकर रखता है…
मोह, माया, धन, की लालसा हर किसी को रहती है।
कोई लाख छुपाएं, पर धन की आस हर कोई करता है
कोई कितना निभा देगा साथ, ये तो वक्त एक वक्त पर ही बता देता है।
जीवन के किरदार बहुत निभा लिये हमने
ना जाने कोन इसकी डोर खींचकर रखता है…
कविता का भावार्थ
कविता का भावार्थ यही है। की जीवन में चाहे कोई भी बदलाव आए अपनी सच्चाई और अच्छाई पर कोई आंच ना आने दे क्युकी उसकी डोर हम सब को अपने इशारों से ही चलाती है। जानते है वो कोन है.. जी हां हम सब का रखवाला ऊपर वाला भगवान..।
🙏धन्यवाद🙏
🙏कविता यादव🙏
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