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पत्नी और बूढ़े पिता

              टॉपिक - हिंदी कहानी

   कहानी का नाम -  पत्नी और बूढ़े पिता 


हैलो दोस्तो आज की मेरी ये कहानी अपने कर्मो पर आधारित हैं, यानी जैसा व्यक्ति करता हैं आगे चलकर उसे वही मिलता है यही बात इस कहानी के किरदार द्वारा निभाया गया हैं। तो पड़िए ये कहानी 


बहुत पुराने समय की बात हैं। एक बार काशी राज्य में एक किसान के घर बोधिसत्व ने जन्म लिया और उनके माता पिता ने उनका नाम कमल रखा , कमल को उन्होंने बड़े लाड प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया। 


बचपन से ही बोधिसत्व बहुत ही तेज दिमाग के थे अपने बाल्यावस्था में वे अन्य बालको की अपेक्षा बहुत ही अधिक ज्ञानी और विचारवान बालक थे। माता पिता का दुलारा तो था परंतु दादा जी का वो प्राणों से प्यारा था।


बोधिसत्व के दादा जी बहुत ही बूढ़े थे वो घर का कोई भी काम नहीं कर पाते थे। इसलिए घर वालो को उनकी सहायता करना पड़ता था। परंतु ये बात उसकी बहू यानी किसान की पत्नी को बिलकुल नहीं भाती थी। उससे उसके ससुर का एक भी काम नहीं होता था वो उनसे बोहोत ही चिड़ती थी। 


एक दिन कमल की मां ने अपने पति से कहा कि " मैं तो तुम्हारे पिता की सेवा करते-करते खुद ही स्वर्ग सिधार जाऊंगी सारा दिन उसी की सेवा में चला जाता है जैसे घर में कोई और काम है ही नहीं, आखिर यह कब तक चलेगा!"


तब किसान यानी उसके पति ने कहा जब तक उनकी आयु तब तक उनके सेवा करना हमारा धर्म बनता है। इससे पहले किसी का गला नही घोंट सकते हैं और यह बात किसान ने उसकी पत्नी के सामने बहुत गुस्से में कहा ।


" इस पर किसान की पत्नी ने बोला मार डालना ही अच्छा है जिंदा रहने से तो ना वह सुखी है ना हम, तिल-तिल कर मरने से तो अच्छा एक बार मार डालें इस बार उसकी पत्नी ने और ज्यादा गुस्से में कहा..।


पहले तो किसान को उसकी पत्नी की बात बहुत बुरी लगती थी लेकिन धीरे-धीरे पत्नी के दबाव में आकर उसकी बातों से वह भी सहमत हो गया वह भी सोचने लगा कि पिता को मार देने में कोई पाप तो हैं, नही, बल्कि वो बुढ़ापे की पीढ़ा से मुक्त हो जायेंगे। 


और इसके लिए किसान और उसकी पत्नी ने  एक योजना भी बना ली। 1 दिन किसान ने अपने पिता से कहा ,


" बाबूजी खेत में कुआं खुदवाने के लिए पड़ोसी गांव के महाजन से कर्ज ले रहा हूं महाजन कहता है कि दस्तावेज पर आपके हस्ताक्षर की आवश्यकता है इसलिए मेरे साथ आप गाड़ी पर बैठकर कृपया करके चलिए "


उसके पिता बेटे की बात को सच मान कर उसके साथ चल पड़ा कमल भी जिद करके अपने दादा के पास गाड़ी पर बैठ गया ।


रास्ते में छोटा सा जंगल था किसान ने जंगल के बीच गाड़ी रोक दी वह एक फावड़ा लेकर उतर पड़ा और बोला तुम दोनों गाड़ी में ठहरो में अभी आता हूं।


पिता के जाने के बाद कमल भी एक फावड़ा लेकर उसी और चल पड़ा।


थोड़ी दूर पर कमल का पिता एक झाड़ी के पास गड्ढा खोद रहा था उसी झाड़ी की दूसरी ओर कमल भी एक गड्ढा खोदने लग गया।


थोड़ी देर में कुछ आवाज सुन कर किसान रुक गया जिधर से आवाज आ रही थी उधर जाकर उसने देखा तो अरे कमल तुम यह गड्ढा क्यों खुद रहे हो, तब कमल ने कहा जिस काम के लिए आप गढ़ा खोद रहे हो, मैं भी उसी काम के लिए गढ़ा खोद रहा हूं कमल के उत्तर ने उसके पिता को झकझोर दिया। 


तब उसके पिता ने पूछा क्या तुम्हें मालूम है कि मैं क्यों गड्ढा खोद रहा हूं?


तब कमल ने कहा  मुझे मालूम तो नहीं है  किस काम के लिए आप गड्ढा खोद रहे हो पर मैं आपकी मदद के लिए ही ऐसा कर रहा हूं इसमें क्या कोई बुराई है, कमल के इस भोलेपन के जबाव ने कमल के पिता के ह्रदय को छू लिया..।


वह अपने बेटे से कुछ छुपा नहीं पाया और उन्होंने कमल से कहा की में ये गढ़ा अपने पिताजी को इस गढ़े में दबाने के लिए खोद रहा हूं, उनके मर जाने पर उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी जो मेरी हैं इस पर कमल ने कहा पर पिताजी दादा जी तो अभी जीवित हैं तो आप ये केसे कर सकते हो। 


और वो अपने पिता की करतूतें के पीछे छिपे षड्यंत्र को भाप गया।


तब कमल ने अपने पिता को समझाया पिताजी जीवन तो किसी का भी शास्वत नहीं है। इसलिए मेभी अपने पिता यानी आपके लिए ही गढ़ा खोद रहा हूं, मेरी भी तो मेरे पिता के प्रति कोई जिम्मेदारी हैं की नहीं .. में भी आपको इस गढ़े में दफना कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊंगा,

कमल ने उसी भोलेपन से कहा जैसे कोई छोटा बच्चा कहता हैं।


उसके पिता को लगा जैसे वह आसमान से नीचे गिर गया हो, बेटे ने उसकी आंख की पट्टी खोल दी उसे अब समझ में आया की वह नीच कर्म करने जा रहा था वह लज्जा से जमीन पर गड़े जा रहा था।


तब किसान अपनी शर्मीदगी के साथ अपने पिता और पुत्र के साथ घर वापस लौट आया।


उधर किसान की पत्नी ने उस दिन खुशी के मारे बहुत ही तरह-तरह के मिष्ठान और भोजन बनाया था और अपने पति और पुत्र की प्रतीक्षा करने लगी।


लेकिन जब उसने देखा की गाड़ी पर उसके पति और पुत्र के साथ उसके ससुर भी हैं, तो वो गुस्से से तिलमिला गई और उसकी खुशी निराशा में बदल गई ।


किसान अंदर आया और उसने जंगल की सारी बात अपनी पत्नी को बताई पत्नी हतप्रद रह गई और उसने अपने पति से कहा …


हाय राम भगवान केसा युग आ गया है, वह अपना सर पीटने लगी और कहने लगी केसा बेटा हैं मेरा जिसे इतने लाड प्यार से पालते है वही अपने जीवित पिता को मारने के लिए गढ़ा खोद रहा हैं, इसे तो ये नही रहता तो अच्छा रहता. 


तब किसान ने कहा तो मेभी तो वही करने जा रहा था, क्या? मेरे माता पिता ने मुझे नहीं पाला होगा इसी लाड प्यार से ।


तब उसकी पत्नी की आंखे खुली और उसे अपने किए पर बोहुत पछतावा होने लगा उसने अपने ससुर जी के पैर पकड़कर माफी मांगी, तब उसके पिता जो इन सब बातों से अनजान थे उन्होंने कहा क्या हुआ बेटी? आज मेरे पैर क्यों पड़ रही हों…।


तब उसने कहा पिताजी मेने आपके साथ कभी भी अच्छा व्यवहार नहीं करा और आपने फिर भी मुझे कुछ नहीं कहा उसके लिए मुझे छमा करना..।


तब उसके ससुर जी ने कहा कोई बात नही बेटी गलतियां तो होती रहती हैं, पर हमेशा याद रखना चाहिए की आपके आगे भी आने वाला कल हैं, भविष्य में क्या पता क्या हो इस बात को हमेशा ध्यान रखकर वर्तमान में जीना चाहिए..


और फिर सबने हंसते और खिलखलाते हुए मिष्ठान और पकवान के मज़े लिए।


इस कहानी से सिख

 दोस्तो यह कहनी हमे यही सिखाती हैं की आप कभी भी वो कार्य ना करें जो लौटकर वापिस आप के पास ही आए, क्युकी जैसा करोगे वैसा ही मिलेगा.. इसलिए अच्छे कर्म करो और अच्छा जीवन जिओ।


दोस्तों अगर मेरी ये कहानी आप को पसंद आई तो प्लीज़ कमेंट करके बताएं।


   धन्यवाद

कविता यादव

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